सस्सी पुन्नू की प्रेम कहानी

                                                    
                                                सस्सी पुन्नू की प्रेम कहानी



सस्सी का जनम भंबोर राज्य के राजा के घर तब हुआ जब राजा अपने घर में नन्हे बालक की किल्कारी सुनने को सालों तक तरस चुका था...! लाख मिन्नतों, मन्नतों, दान- दक्षिणा के बाद एक खूबसूरत सी नन्ही परी ने राजा के आंगन को अपनी किलकारियो से नवाजा ! परंतु हाय री नियति...! 

जन्म के साथ ही ज्योतिषियो ने भविष्यवाणी कर दी की ये बच्ची बडी हो कर (कामल इश्क) अनोखा इश्क करेगी....! ये सुनते ही राजा और उसके समस्त परिवार के खिले चेहरे स्याह पड गये ! अभी तो वे अपनी चांद सी बेटी का जश्न भी नही मना पाये थे कि  भविष्यवाणी ने उनका उत्साह ठंडा कर दिया...! सदियों से यही तो विडंबना है हमारे समाज की... हर पुरुष अपने लिये सस्सी या हीर जैसी मुहब्बत करने वाली औरत खोजता है....चाहता है....पर ये कोई नही चाहते कि कोई सस्सी या हीर बेटी बन कर उसके घर पैदा हो...जो किसी पुन्नू या रांझे के लिये समाज के नियम - कानूनो से टकरा जाये...!
...उसने अपनी फूल सी बच्ची को मारने का हुकुम दे डाला....! पर मंत्रियो ने मंत्रणा कर बच्ची को संदूक में डाल नदी में बहा देने का सुझाव दिया...! वो भी क्या तूफानी रात थी...जब राजा ने बेटी को सोने से भरे संदूक में डाल उफनती नदी की भयानक लहरों के हवाले कर दिया ! यह नियति नही तो और क्या है कि वो बच्ची तूफानी नदी से भी बच निकली !
एक धोबी  ने नदी में डूबता- उतराता संदूक देखा और उसे निकाल कर खोला ! इतना सारा सोना और नन्ही सी प्यारी बच्ची को पा कर वो अपनी किस्मत पर इतराया ! बच्ची को चंद्र कला के समान सुंदर देख कर उसका नाम सस्सी ( शशि का स्थानक प्रयोग) रखा गया! 
साल दर साल बढती सस्सी कि सुंदरता के चर्चे दूर- दूर तक होने लगे...! धोबियो के समाज में से ही किसी ने जा कर भंबोर के राजा को बताया कि एक धोबी के घर अप्सरा सी सुंदर कन्या है जो राजा के महलों कि शोभा बनने के लायक है...!  बस फिर क्या था अधेड राजा ने सस्सी के घर विवाह का न्योता भेज दिया...! सस्सी का पालक पिता इसी उधेडबुन में था कि सोने के भरे संदूक में मिली बच्ची जाने किस उंचे खानदान से संबंधित है? वो ठहरा जात का धोबी...उसे क्या हक़ है कि वो किसी की राजकुमारी को अपनी कह उसका रिश्ता  कर डाले ! राजा के बुलाने पर उसने सस्सी के जन्म समय का तावीज जो उसके गले में था, राजा को दिखा कर अपनी मजबूरी बताई ! 
और कहानी कुछ युं बनी कि उस तावीज को देख कर राजा की स्मृतियां जाग उठीं ! ये तावीज तो उसकी बेटी के गले में था...उसे अपनी नंगी नियत पर शर्म आई ! इधर सस्सी की रानी मां अपनी बेटी की ममता में तडप उठी ! वो सस्सी को महलों में वापिस लाना चाहती थी...! परंतु संदूक में हृदय -हीनता से बहा दिये जाने की घटना से वाकिफ सस्सी ने महलों में जाने से इन्कार कर दिया...! राजा ने धोबी के झोंपडे को महल में बदल दिया...नौकर - चाकर, धन- दौलत से उस महल को भर दिया...! 
नदी के रास्ते आने वाले सौदागरो के पास पुन्नू की तस्वीर देख सस्सी उस पर मोहित हो गयी...! और उससे मिलने को तडपने  लगी...! पर दूर देश में रहने वाला पुन्नू उससे अन्जान ही बना रहा...! एक साल तक वो उसका पता ठिकाना खोजती रही...! अपने राजा पिता से अनुमति ले उसने नदी पर चौकी बिठा कर आने जाने वाले सौदागरो से पूछताछ जारी रखी और एक दिन पुन्नू का पता पा लिया...!  
सौदागरो ने इनाम के लालच में स्वयं को पुन्नू का भाई बताया ! सस्सी ने उन्हें गिरफ्तार करवा लिया और उन्हें पुन्नू को लेकर आने की शर्त पर ही छोडा ! सौदागरो ने पुन्नू के माता- पिता से उसे साथ ले जाने के लिये पूछा ! उनके इन्कार करने पर उन्होने पुन्नू से बार- बार सस्सी की सुंदरता का जिक्र कर उसे अपने साथ चलने के लिये मना लिया..! पुन्नू  को लेकर कारवां भंबोर लौटा ! सौदागरो ने अपने ऊठ आजाद छोड दिये ! और ऊठों ने सस्सी के बाग उजाड दिये...! जिसे गुस्सा हो कर सस्सी ने कारवां वालों की खूब खबर ली...! 
राजा की परित्यक्त बेटी अब राजकुमारी सा जीवन बिताती थी...! बागों में घने पेडों तले उसकी सेज हमेशा बिछी रहती थी...! जहां वह सहेलियो के साथ घूमती खेलती और थक कर सो जाती थी...! पुन्नू कारवां से अलग घूमता-घूमाता वहां पहुंच कर सस्सी की सेज पर सो गया...! उधर कारवां पिटाई के डर से शोर मचाता इधर उधर दौड रहा था...! इसी चीखा- चिल्ली में पुन्नू की नींद टूटती है और सस्सी भी कारवां को खदेडती वहीं पहुंच जाती है...! और यहां प्रेम रस में पगे दो प्रेमियों का प्रथम प्रत्यक्ष दर्शन होता है...! किस्साकार के मार्मिक शब्द है 

"जिसे सहकते सहकते यार मिले...
वही दिल उसकी कद्र जानता है..." 

अपने प्यार को सामने पा कर दुनिया और मर्यादा किसे याद रहती है....??? कहते है...सस्सी पुन्नू प्रेम में इस कद्र खो गये की दस दिन कैसे गुजर गये पता ही नही चला...!!
उधर पुन्नू की माता अपने पुत्र के वियोग में तडपने लगी...! ममता की मारी मां होशो-हवास खो बैठी ! पुन्नू के भाईयो से मां का ये हाल देखा न गया औये वे उसे लेने निकल पडे...!
पुन्नू के मना करने पर भी सस्सी ने उसके  भाईयो का बेहद प्यार और सम्मान से स्वागत किया...! मन में बदला लेने की कुत्सित भावना से वशीभूत उन्होने पुन्नू को साथ चलने के लिये कहा...! उसके मना करने पर उन्होने उसे खूब शराब पिलायी और बेहोशी की हालत में उसे साथ ले गये...! 
सस्सी पर इसकी  प्रतिक्रिया स्वाभाविक थी...पुन्नू के भाईयो के धोखे से आहत वह प्रेम में बिताये मीठे क्षणो को याद कर कर के रोती तडपती ! पुन्नू के साथ घूमे हर स्थान पर जा उसे पुकारती... पागल सी हो गयी....! जिस दीवार से उसने टेक लगायी थी उसे चूमती....जिस दरवाजे पर वो खडा हुआ था उससे लिपटती... हर जगह उसे खोजती अपने-आप में ही न रही थी...! सस्सी की मां उसे पुन्नू के धोखेबाज होने की दलील देती की होश में आने के बाद उसे लौट आना चाहिये था...! पर सस्सी हर दलील रद्द कर देती..! मां उसे लंबे जलते रेगीस्तान का डर दिखाती...! पर सस्सी कहती...

"माए सब्र इंतजार न आशिको को 
इस राह की मुसीबते न बता मुझे  
माए ! रेगीस्तान में वो आग कहां 
जो आग दिन रात जलाये मुझे..."

और सस्सी चल पडी...अपने पुन्नू की तलाश में... रेगीस्तान सन्न रह गया.....उसकी आग शर्मसार हो गयी...तपती जलती रेत हार गयी...! किस्साकार कहता है.....

"आतिश का दरिया खडा, जलाये राह औ' मारे 
बालू रेत तपे ज्यूं ऐसे, भूने जौ हों भठियारे,
तपा तपा थल दोजख जैसा, लाखों मानुस मारे...
नाजुक पैर मासूम सस्सी के, महंदी से  श्रुंगारे .."


और वो नाजुक सी कोमल पैरो वाली चांद सी सुंदर सस्सी अपने प्यार के लिये नियति ही नही प्रकृति से भी टकरा गयी...! नंगे पांव उस आग के दरिया में अकेली उतर गयी...! क्रूर आतिश का दरिया उसे चिलचिलाती धूप, धधकती रेत और भयानक लू के थपेडों से जलाता चला गया...! 
एक भेडें चराने वाला सस्सी को मिला पर उस निर्जन जलते रेगिस्तान में किसी लडकी के देख वो विश्वास न कर सका और और उससे भूत समझ कर डर गया...! सस्सी की पुकार सुन कर भी वो उसकी मदद को न आया...! कहते है सस्सी वहीं खतम हो गयी...क्या पता शायद रेगिस्तान ने ही अपने शर्मसार हाथों से उसे अपनी रेत में छिपा लिया हो...!
कहते है...पुन्नू होश में आते ही अपनी सस्सी के लिये तडप उठा.....वो भी रेगिस्तान पार करता उसी स्थान पर पहुंचा जहां आग का दरिया सस्सी को निगल गया था...! पता नही किस भावना से वशीभूत हो वही भेडें चराने वाला उसे मिल गया जो अभी तक उस स्थान के समीप ही बैठा था जहां सस्सी की रेतीली समाधि थी...! वो पुन्नू को वहां ले गया...कहते है...पुन्नू ने वहीं प्राण त्याग दिये...!

हां ये मोहब्बत है...जहां लाशे मिल जाती है...लोग नही मिलते...! 
देखने सुनने वाले इसे दुखान्त  कहते है..परंतु इश्क मिजाजी जब इश्क हक़ीक़ी बन जाता है तो आत्माओं का मिलन ही सर्वोपरि हो जाता है...! कितने भी आग के दरिया रास्ता रोकें... आत्मा अपने साजन की आगोश में ही सकून पाती है...!  धरती के नियम समाज धोखे जलन सब मिट्टी सा झड जाता है... बचता है तो सिर्फ निस्वार्थ समर्पण...प्रेम...केवल प्रेम...!!!

 
                   sassi-punnu fort 

               यह थी सस्सी पुन्नू की सच्ची प्रेम कहानी  की दास्तान

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