लैला मजनू की प्रेम कहानी

                                                            लैला मजनू की प्रेम कहानी



जब भी कहीं पर प्यार और महब्बत का जिक्र होता है तो सबसे पहले लैला और  प्रेम कहानी का नाम लिया जाता है
कइस इब्न अल-मुल्लाह इब्न मुज़ाहिम एक कवि, जो कि अरब के बानी आमिर जनजाति से था वह शाह अमीरी  का  बेटा था।  खूबसूरत और बेहद आकर्षक व्यक्तित्व की मल्लिका को जब उसने दमिश्क़ के मदरशे में देखा तो पहली नज़र में ही उसे अपना दिल  दे बैठा और उसे उसी प्यार हो गया
उसके पिता ने उसे बहुत समझाया की वह प्यार व्यार की बातैं भूलकर सारा धयान अपनी पढाई पर लगाए लेकिन वह कहाँ किसी की मानने वाला था  
यहीं से शुरू हुई लैला और मजनू की प्रेम कहानी जिसके एक सिरे पर प्रेम था और दूसरे सिरे पर अलगाव।  दोनों चीजें निश्चित थी लेकिन कहते हैं न की प्यार करने वाले कब किसी से डरते हैं धीरे धीरे क़ैस  की मोहब्बत का असर लैला पर भी होने लगा वह भी अपने प्रेमी केस से मिलने के बहाने तलाशने लगी। लेकिन लैला नाज़िद शाह की बेटी थी कुछ ही दिनों में उनके इस प्रेम  प्रसंग की चर्चे गली मोहल्ले में भी होने लगी। जब लैला के पिता नाज़िद शाह को इसके बारे में पता लगा तो क़ैस ने उसके पिता से उनके निकाह के बारे में बात की और लैला के पिता ने वह निकाह नामंजूर कर दिया और लैला  को एक कमरे में कैद कर दिया और उसका कहीं भी बाहर आना जाना बंद कर दिया।  उधर लैला से न मिल पाने की वजह  से  कैश की बुरी हालत हो गयी वह मारा मार  गलियों में फिरने लगा। लोग उसे पागल कहने लगे उसने इस समय बहुत सी कवितायें और शायरीयाँ लिखी जिनमे सिर्फ और सिर्फ लैला का ज़िक्र होता थाउसके इसी पागलपन को देखकर लोग उसे मजनू(पागल) नाम से पुकारने लगे। 
ठीक उसी समय लैला के माता पिता ने लैला का निकाह बख्त से कर दिया गया जोकि एक ऊँचे घराने से ताल्लुक रखता था निकाह के बाद उसने अपने सोहर को बता दिया की वो सिर्फ मजनू की है और मजनू के अलावा कोई उसे छु भी नही सकता।   लैला को बहुत प्रताड़ित किया गया लेकिन उसने बख्त को अपना शोहर काबुल नही किया।  इसी वजह से बख्त ने लैला  को तलाक दे दिया
और लैला ने मजनू की तलाश शुरू कर दी। जब मजनू उसे मिला तो उन्होंने कहीं दूर जाने का निष्चय किया और वह भागते भागते राजस्थान की बिंजोर (अनूपगढ़) नाम की जगह पर पहुँच गए।  और वहां पर आराम करने लगे और थोड़ी ही देर में लैला के पिता और भाई भी उनका पीछा करते करते वहां पर पहुँच गए। और उन सब ने मिलकर मजनू को वहीँ पर ख़त्म कर दिया।  वहीँ पर मजनू के शव के पास में ही लैला ने भी अपनी जान दे दी। और तमाम  प्यार करने वालों के लिए प्यार की मिशाल कायम कर दी।   
और उन दोनो को वहीँ पर दफना दिया गया और इस तरह जो जीवित रहकर नही मिल पाये मरते समय उनकी रूह ज़रूर ज़न्नत में मिल गयी।  


Laila Majnu's Mazar

भारत पाकिस्तान की सीमा से सटे बिंजोर नाम के गाँव में आज भी लैला और मजनू की मज़ार मौजूद है। आज भी यहाँ प्रेमी जोड़े अपना माथा टेकने आते हैं। समय के साथ लैला मजनू की मज़ार अपना महत्व जरूर खोती जा रही है।  लेकिन  प्रेमी प्रेमिकाओं के लिए आज भी यह जगह किसी पवित्र जगह की तरह है।   . प्रेमी जोड़ों को  यह विश्वास  रहता है  की अगर वह यहाँ पर माथा टेकेंगे तो उनकी सभी मनोकामना ज़रूर पूरी होंगी। 
हर साल 14 जून से 19 जून तक यहाँ पर मेला लगता है जहाँ पर दूर से लोग उनकी मज़ार पर चादर चढ़ाने के लिए आते हैं। 

 
          Laila Majnu Mazar At Bijnor Rajasthan


                                        कविता
                          बेवक़्त  बहुत  एक दास्ताँ सुनी थी।
                          एक था मजनू..
                          जो शाम-ओ-सेहर इबादत करता था ।
                          बस एक राजकुमारी में कैद होने की..
                          हर बार हिमाकत करता था।
                          एक परवानी लैला थी ।
                         जो लफ्जों से बगावत करती थी ।
                         लूट
जाऊँ मैं तुझ में ..
                         हर बार इनायत करती थी ।
                         वक़्त भी कुछ और ही था।
                         किरदार भी कुछ और ही थे ।
                         सुन जो दोनों रहे थे ।
                         मिजाज़-ए-बोल कुछ और थे ।
                        ज़माना  हैरान  था,
                        शायद कुछ परेशान था।
                        जल  रहा था यह दास्ताँ सुनकर...
                        देख कर..
                        महसूस कर ।
                       "अलग करो इन्हे
                                    फरमान हुआ"
                        फिर जाने क्या अंजाम हुआ ..
                        मौत  पर उन्हें सारा मुल्क बर्बाद हुआ ..
                        पर उनका इश्क़ कब्र तक "नीरज",
                        मुकमल आबाद हुआ।




           

           यह थी लैला मजनू की प्रेम कहानी  
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